आपसे नियमित मिलने का सिलसिला मेरे गांव जाने के कारण रूक-सा गया था। मेरा मन भी कुछ उद्वेलित था, खैर। मैं होली का हुड़दंग मचाकर गांव से कल ही चूरू आई हूं। अब आपसे नियमित रू-ब-रू होती रहूंगी।
ऊपर के चित्र में भले ही मैं आपको अंगूठा चूसने का जतन करती दिखाई दूं लेकिन मैं बड़ी होने लगी हूं। देखे मेरा यह चित्र-
ऊपर के चित्र में भले ही मैं आपको अंगूठा चूसने का जतन करती दिखाई दूं लेकिन मैं बड़ी होने लगी हूं। देखे मेरा यह चित्र-
अपने-आप सिर उठाना कोई हंसी-खेल नहीं, यह मैंने जाना है। 3 महीने से ज्यादा तपस्या करनी पड़ी है मुझे, इसके लिए। यह मेरी साधना का ही कमाल है।
और यह सधे पैरों का कमाल है, धीरे-धीरे मैं साधना और करती चलूंगी। आप आशीर्वाद देते रहिएगा।
होली में धामल किया यह तो साफ दिख रहा है.
ReplyDeleteकृतिका के लिए / दीनदयाल शर्मा
ReplyDeleteचलना है ज़िन्दगी,
रुकना मौत का नाम,
हँसना है ज़िन्दगी,
रोना नाम गुलाम,
कदम कदम बढ़ाये जा,
हम हैं आपके साथ,
नाम करो आगे बढ़ो ,
ले कर हाथ में हाथ .
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