जरा पहचानो तो सही
यह रूप मैंने लोक आस्था के रूप में मान्य 'जड़ूला' संस्कार के कारण बदल लिया है। जी हां, आज मेरा जड़ूला अर्पण किया गया है।
आज रविवार था और वह भी चैत्र शुक्ल पक्ष का। इसी दिन हमारे परिवार में मान्य मालासी खेतरपाल (क्षेत्रपाल) की पूजा-अर्चना और जड़ूला संस्कार संपादित किया जाता है।
चूरू में जौहरी सागर के पास 'मालासी खेतरपाल' का मंदिर है। यहीं मेरे पिताजी और पूरे परिवार का जड़ूला उतार गया था अतएव आज सुबह-सुबह मैं नहा-धोकर इसी मंदिर में आशीर्वाद लेने पहुंची। मेरी मां और पापा मेरे साथ थे।
चूरू में जौहरी सागर के पास 'मालासी खेतरपाल' का मंदिर है। यहीं मेरे पिताजी और पूरे परिवार का जड़ूला उतार गया था अतएव आज सुबह-सुबह मैं नहा-धोकर इसी मंदिर में आशीर्वाद लेने पहुंची। मेरी मां और पापा मेरे साथ थे।
और फिर जड़ूला संस्कार संपादित किया गया। मंदिर में ही उपस्थित नाई जी श्री श्यामलाल ने मां-पापा के द्वारा निवेदन करने पर खेतरपालजी के नाम जड़ूला उतरवाया।
श्री खेतरपाल जी के मैं ही नहीं अनेक मेरे जैसे नन्हें-मुन्ने अपने मां-पापा के साथ जड़ूला संस्कार संपादित करवाने आए हुए थे। चारों और मिठाई-चूरमा बांटा जा रहा था। खेतरपाल जी के तेल-बाकल़ा अर्पित किया जा रहा था।
इसके बाद हम हैयर सैलून के यहां पहुंचे, और मेरा रूप इस प्रकार से निखरा-

क्यों आपको आया ना आनंद, मुझे नए रूप में देखकर।
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इस शुभ अवसर पर मेरी मां ने मोहल्ले में मिठाई के साथ मेरे जन्म की खुशी भी बांटी-
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इस शुभ अवसर पर मेरी मां ने मोहल्ले में मिठाई के साथ मेरे जन्म की खुशी भी बांटी-