Tuesday, December 21, 2010
Monday, December 13, 2010
विद्वानों का साथ
डॉ. मदन सैनी,शोध निर्देशक एवं साहित्यकार, बीकानेर
प्रो. हरिमोहन बुधोलिया, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)
श्री अन्नाराम सुदामा, प्रख्यात राजस्थानी साहित्यकार, बीकानेर
डॉ. घासीराम वर्मा, प्रोफेसर, रोडे आइलैण्ड विश्वविद्यालय, किंग्सटन (यूएसए)
Wednesday, November 24, 2010
पहला जन्मदिन
16 नवम्बर, 2010
जन्म - 16 नवम्बर, 2009
मैं हुई एक साल की
मिला मां का आशीर्वाद
केक : मां, बाबा का सहयोग
बाबा (पापा) केक के साथ
तोहफे तो होंगे ही
मैं और मेरे शुभचिंतक
Thursday, September 16, 2010
Friday, July 16, 2010
अवसर अनेक तो मुद्राएं भी अनेक
Tuesday, June 29, 2010
Wednesday, June 16, 2010
रंग मुझे लुभाते हैं
आज 16 जून है। आज से ठीक 7 महीने पहले आपसे साक्षात्कार हुआ था मेरा। यानी कि 16 नवम्बर, 2009, मेरा जन्म दिन।
इन महीनों में काफी पड़ावों से गुजरी हूं मैं। बहुत कुछ समझने-सीखने लगी हूं। पहले सिर्फ पीने के यत्न होते थे अब खाने के भी होने लगे हैं। फल तो मेरे शार्गिद बन ही चुके हैं वहीं मां के हाथ का लजीज महीन चूरमा भी खूब रास आता है।
और खिलौने भी मुझे भाने लगे हैं। खेलने का ज्यादा प्रयत्न नहीं, उनको खाने के प्रति उद्यत हूं मैं। मेरी चले तो सारे खिलौनों को चबा जाऊं। पर ऐसा होना नहीं चाहिए ना। यह तो दांतों के आगमन की प्रारम्भिक खुजलाहट है जो मुझे उत्प्रेरित करती है।
और मैं खूब शोर भी मचाने लगी हूं। किलकारियों की गूंज से सभी आनंदित होते हैं। मैं भी।
अरे बातें ही बातें, नहीं, एक फोटो भी होगा, खास आपके लिए-
इन महीनों में काफी पड़ावों से गुजरी हूं मैं। बहुत कुछ समझने-सीखने लगी हूं। पहले सिर्फ पीने के यत्न होते थे अब खाने के भी होने लगे हैं। फल तो मेरे शार्गिद बन ही चुके हैं वहीं मां के हाथ का लजीज महीन चूरमा भी खूब रास आता है।
और खिलौने भी मुझे भाने लगे हैं। खेलने का ज्यादा प्रयत्न नहीं, उनको खाने के प्रति उद्यत हूं मैं। मेरी चले तो सारे खिलौनों को चबा जाऊं। पर ऐसा होना नहीं चाहिए ना। यह तो दांतों के आगमन की प्रारम्भिक खुजलाहट है जो मुझे उत्प्रेरित करती है।
और मैं खूब शोर भी मचाने लगी हूं। किलकारियों की गूंज से सभी आनंदित होते हैं। मैं भी।
अरे बातें ही बातें, नहीं, एक फोटो भी होगा, खास आपके लिए-
चलो एक और फोटो मुस्कराते हुए-
बीच में ये क्या आ गया ? खा लूं इसें-
नहीं, यह खाने का थोड़ा ही है। यह तो खेलने के लिए है। रंग मुझे लुभाते हैं इसलिए।
खूब खेल लिए। अब कुछ आराम कर लें। फिर मिलेगें।
Sunday, May 16, 2010
आधी साल के हो गये हैं हम
Monday, April 5, 2010
कला प्रदर्शनी के नज़ारे
Sunday, March 21, 2010
आया ना आनंद
जरा पहचानो तो सही
यह रूप मैंने लोक आस्था के रूप में मान्य 'जड़ूला' संस्कार के कारण बदल लिया है। जी हां, आज मेरा जड़ूला अर्पण किया गया है।
आज रविवार था और वह भी चैत्र शुक्ल पक्ष का। इसी दिन हमारे परिवार में मान्य मालासी खेतरपाल (क्षेत्रपाल) की पूजा-अर्चना और जड़ूला संस्कार संपादित किया जाता है।
चूरू में जौहरी सागर के पास 'मालासी खेतरपाल' का मंदिर है। यहीं मेरे पिताजी और पूरे परिवार का जड़ूला उतार गया था अतएव आज सुबह-सुबह मैं नहा-धोकर इसी मंदिर में आशीर्वाद लेने पहुंची। मेरी मां और पापा मेरे साथ थे।
हमने परम्परागत रूप से खेतरपालजी की पूजा-अर्चना की।चूरू में जौहरी सागर के पास 'मालासी खेतरपाल' का मंदिर है। यहीं मेरे पिताजी और पूरे परिवार का जड़ूला उतार गया था अतएव आज सुबह-सुबह मैं नहा-धोकर इसी मंदिर में आशीर्वाद लेने पहुंची। मेरी मां और पापा मेरे साथ थे।
और फिर जड़ूला संस्कार संपादित किया गया। मंदिर में ही उपस्थित नाई जी श्री श्यामलाल ने मां-पापा के द्वारा निवेदन करने पर खेतरपालजी के नाम जड़ूला उतरवाया।
श्री खेतरपाल जी के मैं ही नहीं अनेक मेरे जैसे नन्हें-मुन्ने अपने मां-पापा के साथ जड़ूला संस्कार संपादित करवाने आए हुए थे। चारों और मिठाई-चूरमा बांटा जा रहा था। खेतरपाल जी के तेल-बाकल़ा अर्पित किया जा रहा था।
पापा जी को मंदिर प्रांगण में ही चूरू नगर परिषद के पूर्व सभापति श्री मुरलीधर शर्मा मिले। उन्होंने श्री मालासी खेतरपाल के विषय में बतलाते हुए जानकारी दी कि उनका परिवार ही इस मंदिर का पुजारी है।
इसके बाद हम हैयर सैलून के यहां पहुंचे, और मेरा रूप इस प्रकार से निखरा-
इसके बाद हम हैयर सैलून के यहां पहुंचे, और मेरा रूप इस प्रकार से निखरा-
क्यों आपको आया ना आनंद, मुझे नए रूप में देखकर।
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इस शुभ अवसर पर मेरी मां ने मोहल्ले में मिठाई के साथ मेरे जन्म की खुशी भी बांटी-
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इस शुभ अवसर पर मेरी मां ने मोहल्ले में मिठाई के साथ मेरे जन्म की खुशी भी बांटी-
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